हाटी जनजाति समुदाय, गिरिपार सिरमौर, हि० प्र०

📅 01 Sep 2025 by Digital-Hatti

लोक संगीत

हाटी समुदाय का लोक वाद्य यंत्र: रणसिंघा "हमारी संस्कृति हमारी पहचान, हमारा स्वाभिमान" नामक एक नई शृंखला की शुरुआत हो रही है, जिसमें हम हिमाचली संस्कृति के अनछुए पहलुओं को उजागर करने की कोशिश करेंगे। आज, चलिए इस शृंखला की शुरुआत "रणसिंघा" नामक लोक वाद्य यंत्र से करते हैं। ________________________________________ रणसिंघा: हाटी लोक-संस्कृति की अनूठी पहचान हाटी समुदाय की लोक-संस्कृति के लोकगीतों और देव परंपराओं में रणसिंघा का एक विशेष और आकर्षक स्थान है। यह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसे बजाना बहुत कठिन है और इसके लिए खास कला की ज़रूरत होती है। इसे बजाने वाले, जिन्हें बाजगी कहा जाता है, अपने मुँह से संतुलित दबाव के साथ फूँक मारकर मधुर और सुरीली ध्वनि निकालते हैं। इस ध्वनि का तालमेल ढोल-दमाऊ या नगाड़े की ताल के साथ किया जाता है। रणसिंघा को विभिन्न अवसरों पर बजाया जाता है, जैसे कि देव कार्यों, लोकगीतों, साहसिक खेल घोड़ा नृत्य और अतिथियों के स्वागत में। हर अवसर के लिए इसकी धुन अलग होती है। ________________________________________ इतिहास और महत्त्व वीरता का प्रतीक माना जाने वाला यह वाद्य यंत्र महाभारत के युद्ध में भी बजाया गया था। इस बात का प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय के 13वें श्लोक में 'गोमुख' के नाम से दिया गया है: ’ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।।’ संभवतः रणसिंघा को 'गोमुख' इसलिए कहा गया है क्योंकि इस वाद्य यंत्र का ऊपरी हिस्सा, जहाँ से ध्वनि निकलती है, वह गाय के मुख के आकार का होता है। ________________________________________ वर्तमान स्थिति और संरक्षण की आवश्यकता वर्तमान में, इस वाद्य यंत्र को बजाने वाले बाजगी बहुत कम बचे हैं। श्री कल्याण सिंह बाजगी, जो शरली गाँव से संबंध रखते हैं, ढोल-नगाड़े के साथ रणसिंघा बजाने में बहुत निपुण हैं। गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय के अलावा, रणसिंघा को जौनसार बावर और जुब्बल में भी बजाया जाता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी इस अद्भुत संस्कृति को इतिहास बनने से बचाएं। यदि आपके पास इस विषय में कोई अतिरिक्त जानकारी हो, तो कृपया अपने विचार साझा करें। शुभकामनाओं सहित! कुंदन शास्त्री महासचिव, हाटी केंद्रीय समिति गिरिपार क्षेत्र, सिरमौर

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