हाटी जनजातीय आंदोलन की उपलब्धियां
मुख्य घटनाक्रम और उपलब्धियां (1967-2023)
1967: पड़ोसी क्षेत्र जौनसार-बावर को जनजाति का दर्जा मिलना, इस आंदोलन के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणा बनी।
1970 के दशक: केंद्रीय हाटी समिति का गठन किया गया, जिसने गिरिपार क्षेत्र के हाटियों के लिए जनजाति दर्जे की मांग शुरू की।
1979: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग ने हाटियों की मांग को सही मानते हुए, केंद्र सरकार को इसे पूरा करने की अनुशंसा की।
1992: हिमाचल सरकार द्वारा गठित एक समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में हाटियों की मांग को उचित ठहराया और तुरंत स्वीकार करने की सिफारिश की।
2002: संसद में तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री ने हाटियों को जनजातीय दर्जा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई।
2011: तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिमाचल सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा, जिसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की रिपोर्ट ने भी हाटियों के दावों का समर्थन किया।
2021: हिमाचल प्रदेश सरकार ने "एथ्नोग्राफी ऑफ हाटी कम्युनिटी" शीर्षक के तहत एक विस्तृत रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी।
दिसंबर 2022: हाटी अनुसूचित जनजाति (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हुआ।
4 अगस्त 2023: विधेयक को राज्यसभा और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, जिससे हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा प्राप्त हुआ। यह 55 साल की लंबी लड़ाई की ऐतिहासिक सफलता थी।
आंदोलन के अन्य महत्वपूर्ण आयाम
- सांस्कृतिक पहचान: आंदोलन ने हाटी समुदाय को अपनी विशिष्ट और समृद्ध संस्कृति को सोशल मीडिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से उजागर करने के लिए प्रोत्साहित किया।
- शोध का केंद्र: यह आंदोलन शिक्षाविदों और शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय बन गया। कई विश्वविद्यालयों में हाटी संस्कृति, सामाजिक संरचना और प्रथाओं पर गहन शोध कार्य हुए।
- मीडिया और फिल्म में पहचान: गिरिपार क्षेत्र की अनूठी सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं पर कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्में बनाई गईं, जिनमें "Haati: We Exist" और "बुढ़ी दिवाली" जैसी पुरस्कृत फिल्में शामिल हैं।
- राजनीतिक समर्थन: इस आंदोलन को सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन मिला। कई सांसदों और राजनेताओं ने हाटियों की मांग को राष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से उठाया।
- संगठनात्मक विस्तार: केंद्रीय हाटी समिति के अलावा, आंदोलन को जन-आंदोलन बनाने के लिए ग्राम स्तर से लेकर दिल्ली तक विभिन्न इकाइयां और क्षेत्रीय समूह बनाए गए, जिनमें युवाओं की भागीदारी सबसे अधिक रही।